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रेडियोसक्रियता (Radioactivity): what is radioactivity Part-01

रेडियोसक्रियता (Radioactivity): what is radioactivity Part-01

रेडियोसक्रियता (Radioactivity): what is radioactivity। प्रकृति में पाए जाने वाले वे तत्व जो स्वतः विखंडित होकर कुछ अदृश्य किरणों का उत्सर्जन करते रहते हैं, ‘रेडियोसक्रिय तत्व’ कहलाते हैं त्तथा यहघटना ‘रेडियोसक्रियता’ कहलाती हैं। रेडियोसक्रिय तत्वों से निकलने वाली अदृश्य किरणें ‘रेडियोसक्रिय किरणें’ कहलाती है। radioactivity के बारे में अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक पर click  करे https://en.wikipedia.org

रेडियोसक्रियता (Radioactivity): what is radioactivity Part-01

रेडियोसक्रियता (Radioactivity): what is radioactivity 

रेडियोसक्रियता (Radioactivity): प्रकृति में पाए जाने वाले वे तत्व जो स्वतः विखंडित होकर कुछ अदृश्य किरणों का उत्सर्जन करते रहते हैं, ‘रेडियोसक्रिय तत्व’ कहलाते हैं त्तथा यहघटना ‘रेडियोसक्रियता’ कहलाती हैं। रेडियोसक्रिय तत्वों से निकलने वाली अदृश्य किरणें ‘रेडियोसक्रिय किरणें’ कहलाती है।

रेडियोसक्रियता की खोज (Discovery of Radioactivity): 1896 ई. में फ्रांस के वैज्ञानिक ‘हेनरी बेकरेल’ (Henery Becquerel) ने सर्वप्रथम रेडियोसक्रियता का पता लगाया। हेनरी बेकरेल ने पाया कि युरेनियम तथा युरेनियम लवणों से कुछ अदृश्य किरणें स्वतः उत्सर्जित होते हैं। प्रारम्भ में इन अदृश्य किरणों को ‘बेकरेल किरणें’ (Becquerel Rays) कहा गया। 1898 ई. में ‘मैडम क्यूरी’ (Pierre Cuire) ने यह सुझाव दिया कि युरेनियम और इसके यौगिकों से बेकरेल किरणों का निकलना एक परमाणुजनित किया (Atomic Phenomenon) है और यह विशिष्ट गुण युरेनियम की रासायनिक स्थिति या भौतिक अवस्था पर निर्भर नहीं करता है। 1898 ई. में ही ‘मैडम क्युरी’एवं ‘समीडट’ (Schimidt) ने अन्य रेडियोसक्रिय पदार्थों की खोज क्रम में बतलाया कि ‘थोरियम’ धातु के तत्व में भी रेडियोसक्रियता पाई जाती है। 1902 ई. में मैडम क्यूरी तथा उनके पियरे क्यूरी ने पता लगाया कि युरेनियम

के खनिज पिच ब्लैंड (Pitch Blende) में युरेनियम की अपेक्षा लगभग चार गुनी अधिक रेडियोसक्रियता उपलब्धता होती है। इससे स्पष्ट हुआ कि पिच ब्लैंड में युरेनियम से भी अधिक रेडियोसक्रिय तत्व उपस्थित है। इस अनुमान के आधार पर इस वैज्ञानिक दम्पति ने अपने कठिन और जोखिम भरे अनुसंधान के फलस्वरूप 1903 ई. में पिच ब्लैंड से ‘रेडियम’ (Radium) नामक एक अत्यंत रेडियोसक्रिय तत्व की खोज की। आज लगभग 40 प्राकृतिक रेडियोसक्रिय समस्थानिक एवं अनेक रेडियोसक्रिय तत्व ज्ञात है।

रेडियोसक्रियता के प्रकार : किसी तत्व के रेडियोसक्रिय परिवर्तन में परमाणु के नाभिक का विखंडन होता है। इसका कारण यह है कि रेडियोसक्रिय तत्वों के परमाणु अस्थाई होते हैं। ऐसे परमाणु के नाभिक में न्यूट्रानों की संख्या अत्यधिक होती है।

रेडियोसक्रियता दो प्रकार की होती है- प्राकृतिक रेडियोसक्रियता तथा कृत्रिम रेडियोसक्रियता प्राकृतिक रेडियोसक्रियता (Natural Radioactivity): रेडियोसक्रिय तत्वों के परमाणु के नाभिक सवतः विखंडित होकर अन्य तत्वों के परमाणुओं में परिवर्तित होते रहते हैं। यह क्रिया स्वभाविक रूप से चलती है तथा इसमें रेडियोसक्रिय किरणों का उत्सर्जन होता है, इसे ‘प्राकृतिक रेडियोसक्रियता’ कहते हैं। उदाहरण के लिए – युरेनियम, रेडियम, थोरियम आदि तत्वों का विखंडन स्वयं होता रहता है। अतः इन तत्वों में पाई जाने वाली रेडियोसक्रियता प्राकृतिक रेडियोसक्रियता’ कहलाती है

कृत्रिम रेडियोसक्रियता (Artificial Radioactivity):रेडियोसक्रियता (Radioactivity): what is radioactivity Part-01

कृत्रिम रेडियोसक्रियता वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कोई तत्व कृत्रिम तरीके से किसी ज्ञात तत्व के रेडियोसक्रिय समस्थानिक में परिवर्तन किया जाता है। इस प्रक्रिया के उस तत्व पर तीव्र वेग वाले कणों (प्रोटान, ड्यूट्रान, अल्फ़ा कण आदि) से प्रहार किया जाता है। उदाहरण के लिए – मैग्नीशियम, जो एक स्थाई तत्व है, पर अल्फ़ा कणों से प्रहार करने पर एक अस्थाई और रेडियोसक्रिय तत्व सिलिकन बनता है और न्यूट्रान मुक्त होता है, फिर यह स्वतः परिवर्तित होकर स्थाई एलुमिनियम में बदल जाता है।

रेडियोसक्रिय किरणें (Radioactive Rays):

रेडियोसक्रिय पदार्थों से निकलने वाली अदृश्य किरणों को ‘रेडियोसक्रिय किरणें’ (Radioactive Rays) कहते हैं। रेडियोसक्रिय पदार्थों से निकलने वाली इन किरणों को रदरफोर्ड ने 1902 ई. में चुम्बकीय तथा विद्युत क्षेत्र से प्रवाहित करके पाया कि कुछ किरणें विद्युत् क्षेत्र के ऋण ध्रुव की ओर और कुछ किरणें विद्युत् क्षेत्र के धन ध्रुव की ओर मुड़ जाती है तथा अन्य किरणों पर चुम्बकीय एवं विद्युत् क्षेत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और ये सीधे गमन करती हुई निकल जाती है। रदरफोर्ड ने इन किरणों को क्रमशः ‘अल्फा-किरण’, वीटा-किरण’ तथा गामा किरण कहा।

  • रेडियोसक्रिय किरणों के गुण

 

(a) अल्फ़ा  किरणों के गुण

          1. ये किरणें अति सूक्ष्म धन आवेशित कणों की बनी होती है। इस कारण विद्युत् क्षेत्र से होकर गमन करते समय ये किरणें विद्युत् क्षेत्र के ऋण ध्रुव की ओर मुड़ जाती है।

         2. प्रयोग के आधार पर यह पाया गया है कि व-कण वस्तुतः द्विआवेशयुक्त हीलियम आयन (He^++) हैं। इनकी मात्रा हाइड्रोजन परमाणु की मात्रा से चार गुनी अधिक होती है।

        3. ये कण अत्यंत तीव्र वेग से रेडिओसक्रिय तत्वों से नाभिक से बाहर निकलते हैं। इसका वेग प्रकाश के वेग का लगभग 1/10 भाग होता है।

        4. इन कणों का द्रव्यमान अधिक होने के कारण इनकी गतिज उर्जा अधिक होती है।

        5. इन किरणों को किसी गैस से होकर प्रवाहित करने पर ये आयनित कर देती है।

        6. अधिक द्रव्यमान होने के कारण इन किरणों की वेधन क्षमता (Penetrating Power) कम होती है। 0.1 मिमी. मोटी एलुमिनियम की एक पत्तर इन्हें रोक सकती है।

        7. ये किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती है तथा जिंक सल्फाइड या बेरियम प्लैटिनोसायनाइड में स्फुरदीप्ति (Phosphorescence) उत्पन्न करती है।

        8. ये किरणें जीव कोशिकाओं (Living Cells) को नष्ट कर देती है।

  •       (b) बीटा  किरणों के गुण

       1. ये किरणें ऋण आवेशयक्त अत्यंत सक्ष्म कणों की बनीये किरणें ऋण आवेशयुक्त अत्यंत सूक्ष्म कणों की बनी होती है। इस कारण विद्युत् क्षेत्र से होकर गमन करते समय ये किरणें विद्युत् क्षेत्र के धन ध्रुव की ओर मुड़ जाती है।

     2. इन कणों के लिए आवेश और द्रव्यमान का अनुपात e/ m कैथोड किरणों में उपस्थित इलेक्ट्रानों के समान होता है। अतः ये किरणें इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह है।

     3. इन किरणों का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान का 1/1840 होता है।

     4. इन कणों का वेग प्रकाश के वेग का लगभग 9/10 वां भाग होता है। अर्थात इनका वेग व-कण के वेग का नौ गुना होता है।

     5. इनकी गतिज उर्जा व-कणों से बहुत कम होती है, क्यूंकि इनका द्रव्यमान कम होता है

     6. कम गतिज उर्जा के कारण इनकी आयनन क्षमता a-कणों की अपेक्षा कम होती है।

     7. उच्च वेग और कम द्रव्यमान होने के कारण इनकी भेदन क्षमता (Penetrating Power) a-कणों से 100 गुनी अधिक होती है। इनकों रोकने के लिए 0.01 मीटर मोती एल्यूमिनियम की चादर आवश्यक होती है।

    8. ये किरणें फोटोग्राफीक प्लेट को प्रभावित करती है तथा जिंक सल्फाइड एवं बेरियम प्लेटिनोसायनाइड में स्फुरदीप्ति उत्पन्न करती है।

    9. इनकी गतिज उर्जा कम होने के कारण इन किरणों में जिंक सल्फाइड या बेरियम प्लैटिनोसायनाइड जैसे लवणों से स्फुरदीप्ति उत्पन्न करने की क्षमता नहीं के बराबर होती है।

   10. किसी विद्युत् क्षेत्र से होकर गुजरने पर ये धन-ध्रुव की ओर मुड़ जाती है, किन्तु व-किरणों की अपेक्षा इनका विचलन अधिक होता है।

  11. इन किरणों में जीव कोशिकाओं (Living Cells) को नष्ट करने की क्षमता होती है।

(c) गामा (y) किरणों के गुण

रेडियोसक्रियता (Radioactivity): what is radioactivity 

1. ये किरणें विद्युतः उदासीन होती है। इस कारण विद्युत क्षेत्र से होकर गमन करते समय ये किरणें विचलित नहीं होती है।

2. ये किरणें अति लघु तरंगदैधर्य वाली विद्युत् चुम्बकीय तरंग है

3. ये किरणें कणों की नहीं बनी होती है।

4. इन्क्ववेग प्रकाश के वेग के लगभग बराबर होता है।

5. इनकी मात्रा शून्य होती है। अतः गामा किरणें अद्रव्य (Non Material) प्रकृति वाली होती है।

6. अति उच्च वेग से गतिशील होने के कारण गामा किरणों की भेदन क्षमता (Penetrating Power) अल्फ़ा और बीटा किरणों की तुलना में सबसे अधिक होती है।

7. इन किरणों का द्रव्यमान नहीं के बराबर होने के कारण इनका फोटोग्राफीक प्लेट एवं जिंक सल्फाइड या बेरियम पलैटिनोसायनाइड पर प्रभाव बहुत कम पड़ता है।

8. इन किरणों में जीव-कोशिकाओं को नष्ट करने की शक्ति होती है।

9. गतिज उर्जा का मान बहुत कम होने के कारण इन किरणों में गैसों को आयनिक करने की क्षमता बहुत कम होती है।

रेडियोसक्रिय विखंडन (Radioactive Disintegration):

रेडियोसक्रिय तत्वों के नाभिक से रेडियोसक्रिय तत्वों के स्वतः उत्सर्जन की प्रक्रिया को ‘रेडियोसक्रिय विखंडन’ या ‘रेडियोसक्रिय क्षय’ (Radioactive Decay) कहा जाता है। चूँकि यह क्रिया स्वभाविक रूप से स्वतः होती है, अतः इसे ‘प्राकृतिक तिरवंटन’ (Natural Disintegration) भी करते हैं। टस किया

विखंडन’ (Natural Disintegration) भी कहते हैं। इस क्रिया में अल्फ़ा, बीटा और गामा किरणों का उत्सर्जन होता है। 1913 में ‘सॉडी (Soddy), फौजांस (Fajans) तथा ‘रदरफोर्ड’ (Rutherford) ने रेडियोसक्रिय विखंडन से संबंधित सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार –

1. रेडियोसक्रिय तत्वों के परमाणु अस्थाई होते हैं, जो स्वतः विखंडित होकर नए तत्वों में परिवर्तित होते रहते हैं।

2. अल्फ़ा-कण और बीटा कण रेडियोसक्रिय तत्व के परमाणु के नाभिक से उत्पन्न होते हैं।

3. रेडियोसक्रिय परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं –

(a) a-परिवर्तनः व-कण से निकलने से होने वाले परिवर्तन को a-परिवर्तन कहते हैं।

(b) ẞ-परिवर्तनः ẞ-कण के निकलने से होने वाले परिवर्तन को B-परिवर्तन कहते हैं।

किसी परमाणु के नाभिक में से एक अल्फ़ा-कण के निकल जाने से प्राप्त होने वाले परमाणु का द्रव्यमान मूल परमाणु के द्रव्यमान से 4 कम हो जाता है और परमाणु संख्या 2 कम हो जाती है।

इसी प्रकार, किसी परमाणु के नाभिक में से एक ẞ-कण के निकल जाने से प्राप्त होने वाले परमाणु का द्रव्यमान वाही रहता है, जो मूल परमाणु का है, लेकिन परमाणु संख्या में 1 की वृद्धि हो जाती है। किसी परमाणु के नाभिक में से एक अल्फ़ा-कण तथा दो बीटा-कणों के निकल जाने से प्राप्त होने वाले परमाणु की परमाणु संख्या वाही रहती है जो मूल परमाणु की है, लेकिन इसका परमाणु द्रव्यमान मूल परमाणु के द्रव्यमान से 4 इकाई कम हो जाता है। अर्थात

मूल परमाणु और नए परमाणु दोनों एक दूसरे के समस्थानिक (Isotopes) होते हैं।

किसी रेडियोसक्रिय तत्व परमाणु के नाभिक के एक अल्फ़ा-कण के उत्सर्जन से प्राप्त होने वाले नए तत्व का आधुनिक आवर्त सारणी में स्थान जनक तत्व के स्थान से दो समूह बायीं ओर चला जाता है,

Noteradioactivity  की पार्ट 2 जल्द ही हमारी वेबसाइट https://sikshakendra.com

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