- सूर्य (Sun)- ब्रह्माण्ड के असंख्य तारों में से दहकती गैसों का एक विशाल पिण्ड जो पृथ्वी के सबसे निकट है, सूर्य कहलाते है। यह पृथ्वी से 109 गुना बड़ा तथा ऊर्जा का अक्षुण्ण स्रोत है ( इसकी ऊर्जा का स्रोत हाइड्रोज़न अणु के संयोजन से उत्सर्जित ऊर्जा )। इसकी सतह का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस है। सूर्य के कोर का तापमान 1,36,00,000 डिग्री सेल्सियस होती है। यह पृथ्वी से 14.96 करोड़ किलोमीटर दूर है। इसका व्यास – 13,92,000 किलोमीटर आयतन पृथ्वी से -1,300,000 गुणा, द्रव्यमान पृथ्वी से 3,32,000 गुणा, पूर्ण दृश्यमान सीमा- 47.5 लाख किमी, घूर्णन गति -25.38 दिन भूमध्य रेखा पर तथा 33 दिन ध्रुवों पर, आयु लगभग -5 अरब वर्ष, सामान्य तारों का अनुमानित जीवन कल – लगभग 10 अरब वर्ष है।
- सौरमंडल (Solar System)- सूर्य के चारों और अंडाकार मार्गो के सहारे उसकी परिक्रमा करने वाले ग्रहों, उपग्रहों, असंख्य पुच्छल तारों, उल्काओं, क्षुद्रग्रहों आदि के सम्मिलित समूह को सौरमंडल कहते है।
- ग्रह (Planet)- तारे की परिक्रमा करने वाले प्रकाश रहित आकाशीय पिंड, जो की अपने केन्द्रवर्ती तारे के प्रकाश से ही प्रकाशित होते है, ग्रह कहलाते है।
- उपग्रह (Satellite)- ग्रहों का चक्कर लगाने वाले लघु आकर के आकाशीय पिण्ड को उपग्रह कहते हैं।
- क्षुद्र ग्रह (Asteroids)- मंगल तथा वृहस्पति ग्रहों की कक्षा के बीच चक्कर लगाने वाले अत्यंत लघु आकर के आकाशीय पिंडों को क्षुद्र ग्रह कहते हैं।
- तारा (Stars)- वह विशाल खगोलीय पिंड, जिनके पास स्वयं का प्रकाश होता हैं और जो अत्याधिक ऊर्जा एवं अन्य किरणों का विसर्जन करते हैं, तारे कहलाते हैं।
- पुच्छल तारे (Comets)- सूर्य के चतुर्दिक लम्बी किन्तु अनियमित कक्षा में घूमने वाले गैसीय पिण्ड जब ये सूर्य के निकट से गुजरते हैं, तब गर्म होकर इनसे गैसों की फुहार निकलती हैं, जो एक लम्बी चमकीली पूँछ के समान प्रतीत होती है। इसे ही धूमकेतु या पुच्छल तारा कहते है। ये सूर्य दूर ठण्डे अँधेरे क्षेत्र में रहते हैं।
- ध्रुव तारा (Pole Star)- आकाश में उत्तरी ध्रुव के सिरे बिंदु पर दिखाई ददेने वाला एक स्थिर तारा जिसके द्वारा उत्तरी गोलार्ध में किसी भी स्थान से वास्तविक उत्तर ज्ञात किया जा सकता हैं, ध्रुव तारा कहलाता है।
- उल्का (Meteors)- वह आकाशीय कण जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने पर घर्षण से प्रज्वलित हो उठती हैं, और पृथ्वी तक पहुंचने से पूर्व ही जलकर रख हो जाती हैं, उल्का कहलाते है।
- राशियाँ – पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते समय अनेक नक्षत्र समूह ( तारा समूह – राशियाँ ) में होकर गुजरती हैं। इनके आकर विभिन्न हैं। मनुष्य ने अपनी कल्पना के अनुसार विभिन्न नाम रखे हैं। जैसे – मछली व बिच्छु के समान दिखने वाले नक्षत्र समूह को क्रमशः मीन व वृश्चिक कहते है। भारत मेंहे राशियाँ कहते हैं। इनके संख्या बारह है। प्रत्येक राशि को पर करने में पृथ्वी को एक महीना लगता है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, और मीन।
- नक्षत्र (Star Groups)- पृथ्वी के चारो और लगभग 27 तारा समूह हैं जो रात्रि को आकाश में दिखाई पड़ते हैं। चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन में पूरा करता है, इस दौरान वह किसी न किसी नक्षत्र या तारा समूह के सामने से गुजरता है जिससे उस दिन वह नक्षत्र नहीं दिखाई पड़ता है। चन्द्रमा प्रत्येक दिन एक – एक पार कर लेता है। इन नक्षत्रों के नाम – अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगसिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, मघा, अश्लेषा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वा, हस्त, चित्रा, आषाढ़, श्रावण, घनिष्ठा, शक्तिभीषा, पूर्वभाद्र, उत्तरा भद्राशाढ़, रेवती, फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी आदि। पृथ्वी इनमे से प्रत्येक नक्षत्र को लगभग 14 दिनों में पार कर लेती है, इसीलिए नक्षत्रों की अवधि 14 दिनों की होती है।
- आकाश गंगा (The Milky Way)- आकाश गंगा असंख्य तारों का एक विशाल पुंज है। एक – एक तारक पुंज या आकाश गंगा में करोड़ों तारें अवस्थित रहा करते हैं। पृथ्वी पर से नदी के समान आकाश में एक क्षितिज से दूसरे क्षितिज तक दिखाई पड़ने वाली चौड़ी चमकीली पट्टी को आकाश गंगा कहते हैं। हमारा सौर परिवार आकाश गंगा का सदस्य है।
- चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse)- जब चन्द्रमा तथा सूर्य के मध्य पृथ्वी आ जाती है तो चन्द्रमा के कुछ भाग पर पृथ्वी की छाया पड़ती है जिसमे वह भाग दिखाई नहीं देता है इसे ही चंद्र ग्रहण कहते हैं। ऐसा केवल पूर्णिमा को ही होता है, परन्तु यह प्रत्येक पूर्णिमा को नहीं होता। पृथ्वी तथा चन्द्रमा की घूर्णन अक्षों के झुकावों में आपेक्षित अंतर होने के कारण प्रत्येक पूर्णिमा को ग्रहण की स्थिति नहीं बन पाती है।
- सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse)- जब सूर्य और पृथ्वी के मध्य चन्द्रमा आ जाता है तो पृथ्वी के कुछ भाग पर चन्द्रमा की छाया पड़ती है, वँहा के मनुष्यों को सूर्य का कुछ भाग दिखाई नहीं देता है। इसे ही सूर्य ग्रहण कहते है। जब अमावस्या को चन्द्रमा, पृथ्वी तथा सूर्य के केंद्र सीधी रेखा पर होती हैं तो ऐसा होता है। परन्तु चन्द्रमा की कक्षा के तल के झुकाव के कारण प्रत्येक अमावस्या को ऐसी स्थिति नहीं बन पाती है।
- चन्द्रमा (Moon)- जिस तरह पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है, उसी तरह चन्द्रमा ( पृथ्वी का उपग्रह ) भी पृथ्वी का चक्कर लगाता है। इसका पथ अंडाकार है। इसका व्यास पृथ्वी के व्यास का ¼ अर्थात 3475 किमी है। पृथ्वी से इसकी दुरी 3,84,365 किमी है। इसका गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का 1/6 भाग है। चन्द्रमा पर दिन का अधिकतम तापमान 100 डिग्री सेल्सियस तथा रात्रि का न्यूनतम तापक्रम 180 डिग्री सेल्सियस, घनत्वा ( पानी के सापेक्ष ) 3.34 तथा घनत्वा ( पृथ्वी के सापेक्ष )- 0.6058 होती है। चन्द्रमा में उपस्थित प्रमुख तत्वा – सिलिकॉन, लोहा, मैग्नीशियम, तथा चन्द्रमा के उच्चतम पर्वत की ऊंचाई – 35000 फ़ीट है। लिंब – निट्ज पर्वत चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है। चन्द्रमा में अपना प्रकाश नहीं है, और यह भी सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। रात्रि में दिखने वाली चंद्र किरणे वास्तव में सूर्य की परावर्तित किरणें हुवा करती है। चन्द्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने में 27 1/3 (अर्थात 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट और 11.47 सेकंड ) दिन लग जाते है। चन्द्रमा के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचाने में केवल 1.3 सेकंड लगते है।
- प्रकाश वर्ष (Light Year)- आकाशीय पिण्डो की दुरी मापने की इकाई है। एक प्रकाश वर्ष का अर्थ है एक साल में प्रकाश द्वारा तय की गई दुरी। प्रकाश की गति लगभग 3 लाख किमी प्रति सेकंड होती है। प्रकाशवर्ष – 9.608×10¹² किमी।