प्राचीन भारतीय इतिहास
जैन धर्म
जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है | ‘ जैन धर्म ‘ का अर्थ है – ‘ जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म ‘ | जो ‘ जिन ‘ के अनुयायी हो उन्हें ‘ जैन ‘ कहते है | ‘ जिन ‘ शब्द बना है ‘ जि ‘ माने – जीतना | ‘ जिन ‘ माने जितने वाला | जिन्होंने अपने मन को जित लिया , अपनी वाणी को जित लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ठ ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या ‘ जिन ‘ कहा जाता है | जैन धर्म अर्थात ‘ जिन ‘ भगवान का धर्म |
जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था | जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में है | जैन ईश्वर को मारते है जो सर्व शक्तिशाली त्रिलोक का ज्ञाता द्रष्टा है पर त्रिलोक का करता नहीं |
तीर्थंकर नाम चिन्ह जन्म स्थल
- श्री ऋषभनाथ जी – बैल ( अयोध्या )
- श्री अजितनाथ जी – हाथी ( अयोध्या )
- श्री सम्भावनाथ जी – घोड़ा ( सावत्थी )
- श्री अभिनन्दन जी – बन्दर ( अयोध्या )
- श्री सुमतिनाथ जी – पक्षी ( अयोध्या )
- श्री पद्मप्रभु जी – कमल ( कौसाम्बी )
- श्री सुपार्श्वनाथ जी – स्वस्तिक ( वाराणसी )
- श्री चन्द्रप्रभु जी – चन्द्रमा ( चंद्रपुरी )
- श्री सुविधिनाथ जी – मगरमच्छ ( कांकदिपुर)
- श्री शीतलनाथ जी – कल्प वृक्ष ( भद्रिलपुर )
- श्री श्रेयांसनाथ जी – गेंडा ( सिंहपुर )
- श्री वासपूज्य जी – भैसा ( चम्पापुर )
- श्री विमलनाथ जी – शूकर ( कम्पिला )
- श्री अनंतनाथ जी – सेही ( अयोध्या )
- श्री धर्मनाथ जी – वज्र ( रत्नपुर)
- श्री शांतिनाथ जी – हिरन ( हस्तिनापुर )
- श्री कुंथुनाथ जी – बकरा ( हस्तिनापुर )
- श्री अरनाथ जी – मछली ( हस्तिनापुर )
- श्री मल्लिनाथ जी – कलश ( मिथिलापुरी )
- श्री मुनिस्रुवत जी – कछुआ ( राजगृही )
- श्री नमिनाथ जी – नीलकमल ( मिथिलापुरी )
- श्री नेमिनाथ जी – शंख ( सौरिपुर )
- श्री पार्श्व नाथ जी – सर्प ( वाराणसी )
- श्री महावीर स्वामी जी – सिंह ( क्षत्रिय कुंड )
जैनधर्म के सिद्धांत
जैन धर्म के 5 मुलभुत सिद्धांत है |
अहिंसा
जीवन का पहला मुलभुत सिद्धांत देते हुए भगवान् महावीर ने कहा है ‘ अहिंसा परमो धर्म ‘ | इस अहिंसा मी समस्त जीवन का सर समाया है ; इसे हम अपनी सामान्य दिनचर्या में 3 आवश्यक नीतियों (1) कायिक अहिंसा ( कष्ट न देना ) , (2) मानसिक अहिंसा ( अनिष्ट नहीं सोचना ) , (3) बौद्धिक अहिंसा ( घृणा न करना ) का पालन कर समन्वित कर सकते है |
सत्य
उचित व् अनुचित में से उचित का चुनाव करना शाश्वत व् क्षणभंगुर में से शाश्वत का चुनाव करना |
अचौर्य
चेतना के उन्नत शिखर से दिए गए भगवान् महावीर के ‘ अचौर्य महाव्रत ‘ को हम संसारी जिव अपनी सामान्य बुद्धि द्वारा पूर्णतया समझ नहीं पाते | दूसरों की वस्तुऐं न चुराना ही इसका अभिप्राय मानते रहे है परन्तु भगवान् अपनी पूर्ण जागृत केवलज्ञानमय अवस्था से इतना उथल सन्देश नहीं दे सकते | इस महाव्रत का एक दूसरा ही गहरा प्रभावशाली आयाम है |
ब्रह्मचर्य
जब मनुष्य उचित – अनुचित में से उचित का चुनाव करता है एवं अनित्य शरीर – मन बुद्धि से ऊपर उठकर शाश्वत स्वरूप में स्थित होता है तो परिणामतः वः अपनी आनद रूपी सव सत्ता के केंद्र पर लौटता है जिसे ‘ ब्रम्हचर्य ‘ कहा जाता है |
अपरिग्रह
जो सव स्वरूप के प्रति जागृत हो जाता है और शरीर – मन बुद्धि को अपना न मानते हुए जीवन व्यतीत करता है उसकी बाह्म दिनचर्या संयमित दिखती है , जीवन की हर अवस्था में अपरिग्रह का भाव दृष्टिगोचर होता है तथा भगवान् महावीर के पथ पर उस भव्यात्मा का अनुगमन होता है |
सात तत्त्व
- जीव- जैन दर्शन में आत्मा के लिए ‘ जीव ‘ शब्द का प्रयोग किया गया है | आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरूप हैं |
- अजीव – जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव ( पुद्गल ) कहा जाता है |
- आस्त्रव – पुद्गल कर्मों का आस्त्रव करना
- बंध – आत्मा से कर्म बंधना
- संवर – कर्म बंध को रोकना
- निर्जरा – कर्मों को क्षय करना
- मोक्ष – जीवन व् मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं |
नौ पदार्थ
जैन ग्रंथों के अनुसार जीव और अजीव , यह दो मुख्य पदार्थ है| आस्त्रव , बंध , संवर , निर्जरा , मोक्ष , पुण्य , पाप अजीव द्रव्य के भेद हैं |
रत्नत्रय
- सम्यक दर्शन
- सम्यक ज्ञान
- सम्यक चारित्र
चार कषाय
क्रोध , मान , माया , लोभ यह चार कषाय है जिनके कारण कर्मों का आस्त्रव होता है |
चार गतियां
चार गतियां जिनमें संसरी जीव का जन्म मरण होता रहता है – देव गति , मनुष्य गति , तिर्यंच गति , नर्क गति | मोक्ष को पंचन गति भी कहा जाता है |
जैन धर्म की शाखाएं
दिगंबर :- दिगंबर साधु ( निर्ग्रन्थ ) वस्त्र नहीं पहनते है , नग्न रहते है और साध्वियां श्वेत वस्त्र धारण करती हैं | दिगंबर मत में तीर्थंकरों की प्रतिमाएं पूर्ण नग्न बनायीं जाती हैं और उनका श्रीनगर नहीं किया है | दिगंबर समुदाय दो भागों विभक्त है |
- तरणपंथ
- परवार
श्वेताम्बर :- श्वेताम्बर एवं साध्वियां और सन्यासी श्वेत वस्त्र पहनते हैं , तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्रतिमा पर धातु की आँख , कुण्डल सहित बनायीं जाती है और उनका श्रृंगार किया जाता है |
श्वेताम्बर भी दो भागो में विभक्त है :
- देरवासी – ये तीर्थंकरों की प्रतिमाएं की पूजा करते हैं
- स्थानकवासी – ये मूर्ति पूजा नहीं करते बल्कि साधु संतों को ही पूजते हैं
स्थानकवासी के भी दो भाग हैं :-
- बाईस पंथी
- तेरा पंथी
धर्मग्रन्थ
दिगंबर आचार्यों द्वारा सस्त जैन आगम ग्रथो को चार भागो में बांटा गया है –
- प्रथमानुयोग
- करणानुयोग
- चरणानुयोग
- द्रव्यानुयोग
महावीर
जन्म
भगवान महावीर का जन्म ईसा से 540 वर्ष वैशाली गणतंत्र के कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था | ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्धमान रखा गया था | जैन ग्रन्थ उत्तरपुराण में वर्धमान , वीर , अतिवीर , महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है | इन सब नामों के सतह कोई कथा जुडी है | जैन ग्रंथों के अनुसार , 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण ( मोक्ष ) प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद इनका जन्म हुआ था |
विवाह
इनका विवाह यशोदा नमक कुकनया के साथ संपन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ
वैराग्य
महावीर स्वामी के माता पिता की मृत्यु के पश्चात् उनके मन में वैराग्य लेने की इच्छा जागृत हुई , 30 वर्ष की आयु में वैराग्य लिया | इतनी कम आयु में घर का त्याग कर ‘ केशलोच ‘ के साथ जंगलक में रहने लगे । वहां उन्हें 12 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में ऋजुपलिका नदी के तट पर एक साल्व वृक्ष के निचे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ |
ज्ञान और उपदेश
जैन ग्रंथों के अनुसार केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद , भगवान् महावीर ने उपदेश दिया | उनके 11 गांधार ( मुख्य शिष्य ) थे जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे | जैन ग्रन्थ , उत्तरपुराण के अनुसार महावीर स्वामी ने समवसरण में जीव आदि सात तत्त्व , छह द्रव्य , संसार और मोक्ष के कारण तथा उनके फल का नया आदि उपायों से वर्णन किया था |
मोक्ष
भगवान् महावीर ने ईसापूर्व 468 , 72 वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी ( राजगीर ) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण ( मोक्ष ) प्राप्त किया | उनके साथ अन्य कोई मुनि मोक्ष नहीं गए | पावापुरी में एक जल मंदिर स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है की यही वः स्थान है जहाँ से महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी |
नोट :- अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखे https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%A8_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE