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What Are Fules. ईंधन का अर्थ और परिभाषा Class-08

What Are Fules. ईंधन का अर्थ और परिभाषा: हमारे जीवन में  ईंधन का होना कितना महत्तवपूर्ण है , आज इस क्लास के माध्यम से जानकारी लेंगे । ईंधन हमारे जीवन में क्यों महत्तपूर्ण है , ये जानने के लिए पुरे पढ़े और परीक्षा की दिष्टि से महत्वपुर्ण प्रश्न के बारे में जानेगे ‘. अगर आप परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो हमारी वेबसाइट  https://sikshakendra.com/  पर बनने रहे । धन्यवाद 

What Are Fules. ईंधन का अर्थ और परिभाषा

वे सब पदार्थ जो अकेले या अन्य पदार्थों से प्रतिक्रिया करके ऊष्मा प्रदान करते है इंधन कहलाते है। अधिकाँश इंधनों में कार्बन उपस्थित रहता है। इन इंधनों को वायु में जलाने पर ऊष्मा प्राप्त होती है।

इंधन की विशेषताएं :- एक आदर्श ईंधन या उत्तम कोटि के इंधन में निम्न विशेषताएं होने चाहिए

1. इंधन सस्ता व आसानी से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए।

2. इसके भंडारण और इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाएं में कोई कठिनाई नहीं होने चाहिए।

3. वह आसानी से जलने लायक हो और जलने के फलस्वरूप किसी हानिकारक गैस की उत्पति नहीं होनी चाहिए।

4. इसका ऊष्मीय मान उच्च होना चाहिए।

5. इसका ज्वलन ताप उपयुक्त होना चाहिए।

6. इसका दहन न तो अत्यंत मंद और न अत्यंत तीव्र होना चाहिए।

7. इसमें अवाष्पशील पदार्थों की मात्रा कम होनी चाहिए।

नोट:- ठोस व द्रव इंधन की अपेक्षा गैसीय ईंधन अधिक अच्छा होता है।

गैसीय इंधन की विशेषताएं :-

1. इन्हें आसानी से जलाया या बुझाया जा सकता है।

2. इनके प्रयोग से राख एवं धुआँ नहीं बनते।

3. इन्हें एच्छिक स्थान पर ले जाकर ऊष्मा प्राप्त की जा सकती है।

4. इनसे अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त होती है।

5. इनके प्रवाह को आसानी से कम या तेज किया जा सकता है।

6. इनसे प्राप्त ऊष्मा व्यर्थ नहीं जाती है।

सामान्य प्रयोग में आने वाली इंधन गैसें:

1. कोल गैस: यह कई दहनशील गैसों का मिश्रण होता है। इसका संघटन कोयले की किस्म और भंजक स्त्रवन के ताप पर निर्भर करता है। इसकी

औसत प्रतिशत रचना इस प्रकार है:

इनमें से प्रथम तीन अवयव जो तनुकारी पदार्थ कहलाते है जलकर ऊष्मा देते है जबकि असंतृपत हाइड्रोकार्बन प्रकाश उत्पादक होता है और ये प्रदीपक अंग कहलाता है। यह जलाने, प्रकाश उत्पन्न करने में तथा धातुकर्म में अवकरण के लिए प्रयुक्त होती है।

2. भाप अंगार गैस (Water Gas): यह कार्बन मोनोक्साइड और हाइड्रोजन का आण्विक मिश्रण होता है। इसमें अशुध्दियों के रूप में CO2, जल और N2 रहता है। इसे रक्त तप्त कोक पर भाप की धारा प्रवाहित करके प्राप्त किया जाता है। इसका कैलोरी मान प्रोड्यूशर गैस से अधिक होता है। यह अकेले अथवा कोल गैस बनाने के काम आती है जो अमोनिया के औद्योगिक उत्पादन में उपयोगी है। इससे मिथाइल एल्कोहल भी बनाया जाता है।

3. वायु अंगार गैस (Producer Gas): यह कार्बनमोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन का मिश्रण होता है। जिसमें आयतनानुसार दो भाग नाइट्रोजन और एक भाग कार्बन होता है। इसमें अशुद्धि के रूप में थोड़ा कार्बनडाई आक्साइड मौजूद रहता है। इसका कैलोरी मान अन्य इंधनों की तुलना में सबसे कम होता है। यह एक सस्ता इंधन है जो जलकर उच्च ताप देता है। कांच के निर्माण तथा धातु निष्कर्षण में इसका बहुधा उपयोग होता है।

4. तेल गैस (Oil Gas) :- यह सरल, संतृप्त एवं असंतृपत हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होता है (जैसे मीथेन, एसीटिलीन, इथिलिन आदि) यह मिट्टी के तेल या पेट्रोलियम के भंजक स्त्रवण द्वारा तैयार की जाती है। इस गैस में वायु मिलाकर प्रयोगशाला में बर्नर जलाये जाते है।

5. प्राकृतिक गैस (Natural Gas): पेट्रोलियम के कूओं से निकलने वाली गैसों में मुख्य रूप से मीथेन तथा इथेन (कमशः 83% एवं 16%) होती है जो ज्वलनशील होने के कारण इंधन के रूप में प्रयुक्त की जाती है। प्राप्त ऊष्मा की मात्रा के आधार पर प्राकृतिक गैस सर्वश्रेष्ठ इंधन है। प्राकृतिक गैस तेल के कुओं से भी उपफल (By Product) के रूप में प्राप्त किया जाता है। इस गैस का प्रधान अवयव मीथेन होता है। प्राकृतिक गैस का उपयोग कृत्रिम उर्वरकों के उत्पादन में किया जाता है।

6. जीवाश्म इंधन (Fossil Fuel); जीवाश्म इंधन से तात्पर्य उन इंधनों से है जो पेड़ पौधों पर जानवरों के अवशेषों के धरती के अंदर लाखों वर्षों तक दबे रहने के फलस्वरूप बनते है। इन इंधनों में ऊर्जा से भरपूर कार्बन के यौगिक विद्यमान रहते है। कोयला, पेट्रोलियम प्राकृतिक गैस आदि जीवाश्म इंधन के प्रमुख उदाहरण है।

कोयला पृथ्वी के अंदर व्यापक रूप से पाया जाने वाला जीवाश्म इंधन है। कोयला को खनिज कोयला भी कहा जाता है इसमें 60-90% मुक्त कार्बन तथा उसके यौगिक के अतिरिक्त नाइट्रोजन गंधक, लोहा आदि के यौगिक भी उपस्थित रहते है। कोयला मुख्यतः 4 प्रकार के होते है- पीट (Peat), लिग्नाईट (Lignite), बिटुमिनस (Bituminous) तथा एन्थ्रासाइट (Anathracite), पीट कोयला निर्माण की प्रथम अवस्था होती है। एन्थ्रासाइट सर्वोतम किस्म का कोयला होता है जबकि बिटुमिनस कोयले की सामान्य किस्म है।

                                               संसार का अधिकाँश कोयला बिटूमिनस किस्म का होता है। लिग्नाईट को भूरा कोयला कहा जाता है। एन्थ्रासाइट कोयले की अंतिम अवस्था होती है। एन्थ्रासाइट कोयला जलने पर धुआँ नहीं देता है और काफी ऊष्मा उत्पन्न करता है। बिटुमिनस कोयला इंजन में जलाने तथा कोल गैस बनाने में काम आता है। वायु की अनुपस्थिति में कोयले को गर्म करने पर कोक, अलकतरा और कोल गैस प्राप्त होते है। इस प्रक्रिया को कोयले का भंजक स्त्रवण (Destructive Distillation of Coal) कहते है। कोयले का उपयोग बॉयलरों, इजनों और भट्टियों में इंधन के रूप में कोल गैस बनाने में, धातुकर्म में अवकारक के रूप में तथा कई रासायनिक पदार्थों के निर्माण म किया जाता है।

पेट्रोलियम भूरे काले रंग का एक तैलीय द्रव होता है जिसमें एक विशेष प्रकार की गंध होती है। यह वस्तुतः की हाइड्रोकार्बनों (ठोसद्रव और गैसीय) एवं गंधक का मिश्रण होता है। कच्चा पेट्रोलियम का प्रभाजी आसवन या स्त्रवण (Fractional Distillation) द्वारा शोधन करने पर यह हाइड्रोकार्बनोंके कई भागों में अलग अलग हो जाता है।

                     एक प्रभाजक स्तम्भ (Fractionating column) में इन अवयवों को उनके क्वथनांक बिंदु पर अलग अलग कर लिया जाता है। कच्चा पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन या स्त्रवण द्वारा निम्न पदार्थ प्राप्त होते है। एस्फाल्ट (Asphalt), स्नेहक तेल (lubricatioing oil), पैराफिन मोम (Paraffin Wax) इंधन तेल (Fual oil), डीजल तेल, मिट्टी का तेल, पेट्रोल,पेट्रोलियम गैस आदि। इंधन तेल का उपयोग मुख्यतः उद्योगों के बॉयलरों और भट्टियों को गर्म करने में किया जाता है। यह कोयले से उत्तम किस्म का इंधन होता है। इसका इंधन तेल का उपयोग मुख्यतः उद्योगों के बॉयलरों और भट्टियों को गर्म करने में किया जाता है। यह कोयले से उत्तम किस्म का इंधन होता है।

                                   इसका पूर्ण दहन होता है अतः जलने के पश्चात् राख नहीं बनता है। पेट्रोल और डीजल का उपयोग स्वाचित वाहनों और इंजनों में किया जाता है। केरोसिन तेल का उपयोग घरों में प्रकाश उत्पन्न करने हेतु लालटेन, लैंप आदि में किया जाता है। इसका उपयोग स्टोव जलाने में भी होता है। पेट्रोलियम गैस इथेन, प्रोपेन और ब्यूटेन का मिश्रण होता है। इसका मुख्य अवयव नार्मल एवं आइसो ब्यूटेन होता है जो तेजी से जलकर ऊष्मा प्रदान करता है। दाब बढ़ाने पर नार्मल एवं आइसो ब्यूटेन आसानी से द्रवीभूत हो जाता है। अतः द्रव रूप में इसे सिलिंडरों में भरकर द्रवित पेट्रोलियम गैस के नाम से जलावन के लिए उपभोक्ता को दिया जाता है।

किसी इंधन का ऊष्मीय मान ऊष्मा की वह मात्रा है जो उस इंधन के एक ग्राम को वायु या आक्सीजन में पूर्णतः जलाने के  पश्चात प्राप्त होती है। उत्पन्न ऊष्मा को कैलोरी, किलो कैलोरी या जूल के पदों में व्यक्त किया जाता है। किसी भी अच्छे ईंधन का ऊष्मीय मान अधिक होना चाहिए। सभी इंधनों में हाइड्रोजन का ऊष्मीय मान सबसे अधिक होता है लेकिन इसका उपयोग घरेलू या औद्योगिक इंधन के रूप में सामान्यतः नहीं किया जाता क्योकि इसका सुरक्षित भंडारण कठिन होता है। इसका उपयोग अन्तरिक्ष यानों में त्तथा उच्च ताप उत्पन्न करने वाले ज्वालकों में किया जाता है। हाइड्रोजन को भविष्य का इंधन कहा जाता है।

जिस न्यूनतम ताप पर कोई पदार्थ जलना शुरू करता है उसे उस पदार्थ का ज्वलन ताप कहते है।

किसी पदार्थ के आक्सीजन में जलने पर ऊष्मा और प्रकाश उत्पन्न होते है। जलने की इस क्रिया को दहन कहते है। दुसरे शब्दों में दहन वह रासायनिक अभिक्रिया है जिसमें ऊष्मा और प्रकाश उत्पन्न होते है तथा उत्पन्न ऊष्मा अभिक्रिया को चालु रखने के लिए पर्याप्त होती है। दहन एक आक्सीकरण क्रिया है।

वे पदार्थ जो जलते है, दहनशील या ज्वलनशील पदार्थ कहलाते है, जैसे- कार्बन गंधक. मोमबती, मैग्नीशियम आदि।

वे पदार्थ जो नहीं जलते अदहनशील या अज्वलनशील पदार्थ कहलाते है जैसे बालू, पत्थर, इंट, मिट्टी आदि।

जो पदार्थ दहन की क्रिया में सहायक नहीं होते है उन्हें दहन का अपोषक कहते है, जैसे-कार्बनडाई आक्साइड।

नोट :- सभी दहन क्रियाएं आक्सीकरण क्रिया होती है लेकिन सभी आक्सीकरण क्रियाएं दहन नहीं होती है।

दहन के आवश्यक शर्तें: दहन की क्रिया के लिए निम्नलिखित तीन शर्ते आवश्यक है:

1. दहनशील पदार्थ की उपस्थिति

2. दहन के पोषक पदार्थ की उपस्थति

3. ज्वलन ताप की प्राप्ति।

दहन के प्रकार :- दहन के निम्नलिखित प्रकार होते है-

1.दूत दहन (Rapid Combustion):- दहन की वह किया जिसमें ऊष्मा एंव प्रकाश अल्प समय में उत्पन्न होते है द्रुत दहन कहलाता है। जैसे- माचिस की तीली का जलना, पटाखों का फूटना आदि।

2. मंद दहन :- दहन की वह क्रिया जो बहुत धीरे धीरे सम्पादित होती है मंद दहन कहलाता है। श्वसन मंद दहन का अच्छा उदाहरण है।

3. स्वतः दहन (Auto Combustion): दहन की वह क्रिया जो बिना किसी बाहरी ऊष्मा के सम्पादित होती है स्वतः दहन कहलाता है जैसे- फास्फोरस का ज्वलन।

4. विस्फोट:- दहन की वह क्रिया जो बाहरी दाब या प्रहार के प्रभाव से होती है विस्फोट कहलाता है जैसे पटाखों का फूटना, बम का फूटना आदि।

रॉकेट इंधन को प्रणोदक (Propellants) कहते है। रॉकेट के प्रणोदन (Propulsion) के लिए प्रणोदक ऊर्जा प्रदान करते है। प्रणोदक वैसे इंधन है जिनके जलने पर अत्यधिक मात्रा में गैसें एवं ऊर्जा उत्पन्न होती है तथा इनका दहन बहुत तीव्र गति से होता है एवं दहन के पश्चात कोई अवशेष नहीं बचता है। प्रणोदक के दहन के फलस्वरूप उत्पन्न गैसें रॉकेट के पिछले भाग से जेट के रूप में बहुत तीव्र गति से बाहर निकलती है जिससे रॉकेट का इच्छित दिशा में प्रणोदक होता है।

प्रणोदक दो प्रकार के होते है-:

1. द्रव प्रणोदक

2. ठोस प्रणोदक

जानवरों और पेड़ पौधों से प्राप्त व्यर्थ पदार्थ सूक्ष्म जीवों द्वारा जल की उपस्थिति में आसानी से सड़ते है और इस प्रक्रिया में मीथेन, कार्बनडाई आक्साइड, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन अल्फाईड आदि गैसें निकलती है। इस गैसीय मिश्रण को बायो गैस कहते है।

इसमें लगभग 65% मीथेन होता है। यह एक उत्तम गैसीय इंधन है। बायोगैस जलने पर धुआँ उत्पन्न नहीं करता है साथ ही साथ इसके जलने से पर्याप्त ऊष्मा प्राप्त होती है। इसे घरेलू उपयोग में लाने के लिए किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती है। बायो गैस की समाप्ति के पश्चात संयंत्र में अवशिष्ट पदार्थ में नाइट्रोजन एवं फास्फोरस के कई यौगिक रहते है। अतः अवशिष्ट पदार्थों का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है। अतः बायो गैस काफी उपयोगी गैस है।

 

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