प्राचीन भारतीय इतिहास | Ancient Indian History
प्राचीन भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण टॉपिक वैदिक सभ्यता को आज बिस्तार से जानने की कोशिश करेंगे | जिससे हर किसी को भारतीय इतिहास के बारे जान पाए | और अपनी ज्ञान को बढ़ा पाए जिससे उनके हर फिल्ड में उनकी मद्दत हो पाए चाहे वो किसी भी परीक्षा की तैयारी कर रहे हो सभी में उनकी योग्यता को और निखार के आये | ऐसे ही और भी महत्वपूर्ण जानकारी जानकारी पाने के लिए हमारे साथ जुड़े रहिये https://sikshakendra.com/wp-admin/post.php?post=1527&action=edit
वैदिक सभ्यता
सिंधु सभ्यता के पतन के बाद जो नवीन संस्कृति प्रकाश में आयी उसके विषय में हमें सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है | इसलिए इस काल को हम ‘ वैदिक काल ‘ अथवा वैदिक सभ्यता के नाम से जानते है | चूँकि इस संस्कृति के प्रवर्तक आर्य लोग थे इसलिए कभी – कभी आर्य सभ्यता का नाम भी दिया जाता है | यहाँ आर्य शब्द का अर्थ – श्रेष्ठ , उदान्त , अभिजात्य , कुलीन , उत्कृष्ट , स्वतन्त्र आदि है | यह काल 1500 ई पू से 600 ई पू तक अस्तित्व में रहा |
वैदिक सभ्यता का नाम ऐसा इस लिए पड़ा की वेद उस काल की जानकारी का प्रमुख स्रोत हैं | वेद चार है – ऋग्वेद , सामवेद , अथर्ववेद और यजुर्वेद | इनमे से ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी | ऋग्वेद में ही गायत्री मंत्र है जो सविता ( सूर्य ) को समर्पित है |
ऋग्वैदिक काल 1500-1000 ई पू
ऋग्वैदिक काल के अध्ययन के लिए दो प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध है –
- पुरातात्विक साक्ष्य
- साहित्यिक साक्ष्य
पुरातात्विक साक्ष्य
इसके अंतर्गत निम्नलिखित साक्ष्य उपलब्ध प्राप्त हुए है –
- चित्रित धूसर मृदभांड
- खुदाई में हरियाणा के पास भगवान पूरा में मिले 13 कमरों वाला मकान तथा पंजाब में भी प्राप्त तीन ऐसे स्थल जिनका सम्बन्ध ऋग्वैदिक काल से जोड़ा जाता है |
- बोगाज- कोई अभिलेख / मितल्पी अभिलेख (1400 ई पू ) इस लेख में हित्ती राजा शुब्विलुलियम ओर मित्तान्नी राजा मत्तिउआजा के मध्य हुई संधि के साक्षी के रूप मे वैदिक देवता इन्द्र , मित्र , वरुण और नासत्य का उल्लेख है |
साहित्यिक साक्ष्य
ऋग्वेद मे 10 मण्डल एवं 1028 सूक्त है | पहला एवं दसवां मण्डल बाद मे जोड़ा गया है जबकि दूसरा से 7 वां मण्डल पुराना है
प्रशासनिक इकाई
प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल थी | एक कुल मे एक घर मे एक छत के नीचे रहने वाले लोग शामिल थे | एक ग्राम कई कुलों से मिलकर बना होता था | ग्रामों का संगठन विश कहलाता था और विशों का संगठन जन | कई जन मिलकर राष्ट्र बनाते थे | ऋग्वैदिक भारत का राजनीतिक ढ़ाचा आरोही क्रम मे – कुल > ग्राम > विशस > जन > राष्ट्र
धर्म
ऋग्वैदिक काल मे प्राकृतिक शक्तियों की ही पूजा की जाती थी और कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी | ऋग्वैदिक काल धर्म की अन्य विशेषताएं – क्रत्या , निऋति , यातुधान , ससरपरी आदि के रूप मे अपकरी शक्तियों अर्थात , भूत -प्रेत , राछसों , पिशाच एवं अप्सराओ का जिक्र दिखाई पड़ता है |
आर्थिक जीवन
वैदिक आर्यों ने पशुपालन को ही अपना मुख्य व्यवसाय बनाया था | ऋग्वैदिक सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी | इस वेद मे ‘ गव्य एवं गव्यति ‘ शब्द चारागाह के लिए प्रयुक्त है | इस काल मे गाय का प्रयोग मुद्रा के रूप मे भी होता था | अवि ( भेड़ ) , अजा ( बकरी ) का ऋग्वेद मे अनेक बार जिक्र हुआ है | हाथी , बाघ , बतख , गिद्ध से आर्य लोग अपरिचित थे | धनी व्यक्ति को गोपत कहा गया था | राजा को गोपति कहा जाता था | युद्ध के लिए गविष्ट , गेसू , गव्य ओर गम्य शब्द प्रचलित थे | समय की माप के लिए गोधूल शब्द का प्रयोग किया जाता था | दूरी का मान के लिए गवयतु |
न्याय व्यवस्था
न्याय व्यवस्था धर्म पर आधारित होती थी | राजा कानूनी सलाहकारों तथा पुरोहित की सहायता से न्याय करता था | चोरी , डकैती , राहजनी , आदि अनेक अपराधों का उल्लेख मिलता है | इसमें पशुओं की चोरी सबसे अधिक होती थी जिसे पनि लोग करते थे | पुत्र प्राप्ति हेतु देवताओं से कामना की जाती थी ओर परिवार संयुक्त होता था |
उत्तर वैदिक काल
उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई पू ) भारतीय इतिहास में उस काल को , जिसमे सामवेद , यजुर्वेद एवं अथर्ववेद तथा ब्राह्मण ग्रंथों , आरण्यकों एवं उपनिषद की रचना हुई , को उत्तर वैदिक काल कहा जाता है |
वैदिक साहित्य
- वैदिक साहित्य में चार वेद एवं उनकी संहिताओं , ब्राह्मण , आरण्यक , उपनिषदों एवं वेदांगों को शामिल किया जाता है |
- वेदों की संख्या चार है – ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद और अथर्ववेद |
- ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद और अथर्ववेद विश्व के प्रथम प्रामाणिक ग्रन्थ है |
- वेदों को अपौरुषेय कहा गया है | गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्त कराने के कारन वेदों को ” श्रुति ” की संज्ञा दी गई है |
ऋग्वेद
- ऋग्वेद देवताओं की स्तुति से सम्बंधित रचनाओं का संग्रह है |
- यह 10 मंडलों में विभक्त है | इसमें 2 से 7 तक के मंडल प्राचीनतम मने जाते हैं | प्रथम एवं दशम मंडल बाद में जोड़े गए है | इसमें 1028 सूक्त हैं |
- इसकी भाषा पद्यात्मक है |
- ऋग्वेद में 33 देवो का उल्लेख मिलता है |
- राप्रसिद्ध गायत्री मंत्र जो सूर्य से सम्बंधित देवी गायत्री को सम्बोधित है , ऋग्वेद में सर्वप्रथम प्राप्त होता है |
- ”असतो माँ सद्गमय ” वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है |
- ऋग्वेद में मंत्र को कंठस्त करने में स्त्रियों के नाम भी मिलते हैं | जिनमें प्रमुख हैं – लोपामुद्रा , घोषा , शाची , पौलोमी एवं कक्षावृति आदि
- इसमें पुरोहित क नाम होतृ है |
यजुर्वेद
- यजु का अर्थ होता है यज्ञ |
- यजुर्वेद वेद में यज्ञ की विधियों का वर्णन किया गया है |
- इसमें मन्त्रों का संकलन आनुष्ठानिक यज्ञ के समय सस्तर पाठ करने के उदेश्य से किया गया है |
- इसमें मन्त्रों के साथ – साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी विवरण है जिसे मंत्रोच्चारण के साथ संपादित किए जाने का विधान सुझाया गया है |
- यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक एवं गद्यात्मक दोनों है |
- यजुर्वेद की दो शाखाएं है – कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद |
- कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएं है – मैत्रायणी संहिता , काठक संहिता , कपिन्थल तथा संहिता | शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं – मध्यान्दिन तथा कण्व संहिता |
- यह 40 अध्याय में विभाजित है |
- इसी ग्रन्थ में पहली बार राजसूय तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोह का उल्लेख है |
सामवेद
सामवेद की रचना ऋग्वेद में दिए गए मन्त्रों को गाने योग्य बनाने हेतु की गयी थी |
- इसमें 1810 छंद है जिनमें 75 को छोड़कर शेष सभी ऋग्वेद में उल्लेखित हैं |
- सामवेद तीन शाखाओं में विभक्त है – कौथुम , राणायनीय और जैमनीय |
- सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है |
अथर्ववेद
- इसमें प्राक- ऐतिहासिक युग की मुलभुत मान्यताओं , परम्पराओं का चित्रण है | अथर्ववेद 20 अध्यायों में संगठित है | इसमें 731 सूक्त एवं 6000 के लगभग मंत्र है |
- इसमें रोग तथा उसके निवारण के साधन के रूप में जानकारी दी गयी है |
- अथर्ववेद की दो शाखाएं है – शौनक और पिप्पलाद |
ब्राह्मण
दिक् मन्त्रों तथा संहिताओं को ब्रह्म कहा गया है | वही ब्रह्म का विस्तरितपको ब्राह्मण कहा गया है | पुरातन ब्राह्मण में ऐतरेय , शतपथ , पंचविश , तैतरीय आदि विशेष महत्वपूर्ण है | महर्षि याज्ञवल्क्यने मंत्र सहित ब्राह्मण ग्रंथों की उपदेश आदित्यसे प्राप्त किया है |
संहिताओं के अंतर्गत कर्मकांड की जो विधि उपदिष्ट है ब्राह्मण में उसी की सप्रमाण व्याख्या देखने को मिलता है | प्राचीन परंपरा में आश्रमनुरूप वेदों का पाठ करने की विधि थी | अतः ब्रह्मचारी ऋचाओं ही पाठ करते थे , गृहस्थ ब्राह्मणों का , वानप्रस्थ आरण्यकों और सन्यासी उपनिषदों का | गार्हस्थ्यधर्म का मननीय वेदभाग ही ब्राह्मण है | यह मुख्यतः गद्य शैली में उपदिष्ट है | ब्राह्मण ग्रंथों से हमें बिम्बिसार के पूर्व की घटना का ज्ञान प्राप्त होता है | सर्वाधिक परवर्ती ब्राह्मण गोपथ है |
आरण्यक
आरण्यक वेदों का वह भाग है जो गृहस्थाश्रम त्याग उपरांत वानप्रस्थ लोग जंगल में पाठ किया करते थे | इसी कारन आरण्यक नामकरण किया गया |
- इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय रहस्यवाद , प्रतीकवाद , यज्ञ और पुरोहित दर्शन है |
- सामवेद और अथर्ववेद का कोई आरण्यक स्पष्ट और भिन्न रूप में उपलब्ध नहीं है |
- वर्त्तमान में सात आरण्यक उपलब्ध है |
उपनिषद
उपनिषद प्राचीनतम दार्शनिक विचारों का संग्रह है |
- कुल उपनिषदों की संख्या 108 है |
- मुख्य रूप से शास्वत आत्मा , ब्रह्म , आत्मा – परमात्मा के बीच सम्बन्ध तथा विश्व की उत्पत्ति से सम्बंधित रहस्यवादी सिद्धांतों का विवरण दिया गया है |
- ” सत्यमेव जयते ” मुण्डकोपनिषद से लिया गया है |
- मैत्रायणी उपनिषद में त्रिमूर्ति और चार्तु आश्रम सिद्धांत का उल्लेख है |
वेदांग
युगांतर में वैदिक अध्ययन के लिए छः विधाओं का जन्म हुआ जिन्हें ‘ वेदांग ‘ कहते है | वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग , तथापि इस साहित्य के पौरुषेय होने के कारन श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है | वेदांग को स्मृति भी कहा जाता है , क्योंकि यह मनुष्यों की कृति मणि जाती है | वेदांग सूत्र के रूप में है इसमें कम शब्दों में अधिक तथ्य रखने का प्रयास किया गया है | वेदांग की संख्या 6 है |
- शिक्षा – स्वर ज्ञान
- कल्प – धार्मिक रीति एवं पद्धति
- निरुक्त – शब्द व्यातपत्ति शास्त्र
- व्याकरण – व्याकरण
- छंद – छंद शास्त्र
- ज्योतिष – खगोल विज्ञान
सूत्र साहित्य
सूत्र साहित्य वैदिक साहित्य का अंग है | उसे समझने मे सहायक भी है |
ब्रम्हा सूत्र – भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीवेद व्यास ने वेदान्त पर यह परंगुड़ ग्रंथ लिखा है |
कल्प सूत्र – ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण | वेदों का हास्य स्थानीय वेदांग |
स्रोत सूत्र – महायज्ञ से संबंधित विस्तृत विधि – विधानों की व्याख्या | वेदांग कल्पसूत्र का पहला भाग
स्मार्त सूत्र – षोडश संस्कारों का विधान करने वाला कल्प का दूसरा भाग
शूल्ब सूत्र – यज्ञ स्थल तथा अग्निवेदी के निर्माण तथा माप से संबंधित नियम इसमें है | इसमें भारतीय ज्यामिति का प्रारम्भिक रूप दिखाई देता है | कल्प का तीसरा भाग |
धर्म सूत्र – इसमे सामाजिक धार्मिक कानून तथा आचार संहिता है | कल्प का चौथा भाग
गृह सूत्र – परुवरिक संस्कारों , उत्सवों तथा वैयक्तिक यज्ञों से संबंधित विधि – विधानों की चर्चा है |
नोट :- अगर अधिक जानकारी चाहिए तो आप यहाँ पर देख सकते है https://hi.m.wikipedia.org/वैदिक सभ्यता