प्राचीन भारतीय इतिहास (Ancient Indian History)
प्रागैतिहासिक काल
भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है |
प्रागैतिहासिक शब्द प्राग+ इतिहास से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है – इतिहास से पूर्व का युग |
प्रागैतिहासिक (Prehistory) इतिहास के उस काल को कहा जाता है जब मानव तो अस्तित्व में थे लेकिन तब लिखाई का आविष्कार न होने के होने के कारण उस काल का कोई लिखित वर्णन नहीं है | इस काल में मानव- इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुई जिनमें हिमयुग , मानवों का अफ्रीका से निकलकर अन्य स्थानों में विस्तार , आग पर स्वामित्व पाना , कृषि का आविष्कार , कुत्तों व् अन्य जानवरों का पालतू बनना इत्यादि शामिल हैं | ऐसी चीजों के केवल चिन्ह ही मिलते हैं , जैसे की पत्थरों के प्राचीन औजार , पुराने मानव पड़ावों का अवशेष और गुफाओं की कला |
यह वो समय है जब हम पशु से मनुष्य के रूप में विकसित हुए है जब मनुष्य ने खाद्य उत्पादन आरम्भ नहीं किया था |
प्रागैतिहासिक भारत को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है :-
- पूर्व पाषाण काल
- मध्य पाषाण काल
- उत्तर पाषाण काल
- धातु पाषाण काल
पूर्व पाषाण काल
पूर्व पाषाण कालीन सभ्यता के केंद्र दक्षिण भारत में मदुरा त्रिचनापल्ली , मैसूर , तंजौर आदि क्षेत्रों में इस सभ्यता के अवशेष मिले है | इस समय मनुष्य का प्रारंभिक समय था , इस काल में मनुष्य और जानवरों में विशेष अंतर नहीं था | पूर्व पाषाण कालीन मनुष्य कन्दराओं , गुफाओं , वृक्षों आदि में निवास करता था | पूर्व पाषाण कालीन मनुष्य पत्थरों का प्रयोग अपनी रक्षा के लिये करता था | कुल्हाड़ी और कंकड़ के औजार सोहन नदी घाटी में मिले है | सोहन नदी सिंधु नदी की सहायक नदी है | उसके पत्थर के औजार साधारण और खुरदुरे थे | इस युग में मानव शिकार व् भोजन एकत्र करने की अवस्था में था | खानाबदोश जीवन बिताता था और उन जगहों की तलाश में रहता था , जहाँ खाना पानी ज्यादा मात्रा में मिल सके |
मध्य पाषाण काल
मध्य पाषाण काल में पत्थर के औजार बनायें जाने लगे इस काल में कुल्हाड़ियों के अलावा , सुतारी , खुरचनी और बाण आदि मिले है | इस काल में मिटटी का प्रयोग होने लगा था | पत्थरों में गोमेद , जेस्पर आदि का प्रयोग होता था | इस काल के अवशेष सोहन नदी , नर्मदा नदी और तुगमद्र नदी के किनारे पाए गये |
उत्तर पाषाण काल
इस काल में भीमानव पाषाणों का ही प्रयोग करता था , किन्तु इस काल में निर्मित हथियार पहले की अपेक्षा उच्च कोटि के थे | पाषाण काल का समय मानव जीवन के लिये विशेष अनुकूल था | इस काल के मनुष्य अधिक सभ्य थे | उन्होंने पत्थर व् मिटटी को जोड़कर दीवारे व् पेड़ की शाखाओं व् जानवरों की हड्डियों से छतों का निर्माण किया एवं समूहों में रहना प्रारम्भ कर दिया | मिटटी के बर्तन , वस्त्र बुनना आदि प्रारम्भ कर दिया | हथियार नुकीले सुन्दर हो गये | इस काल के औजार सेल्ट , कुल्हाड़ियाँ , छेनियाँ , गदाएँ , मुसला , आरियाँ इत्यादि थे | उत्तर पाषाण कालीन लोग पत्थर को रगड़कर आग जलने व् भोजन पकाने की कला जानते थे | इस काल में धार्मिक भावनायें भी जागृत हुई | प्राकृतिक पूजा वन , नदी आदि की करते थे |
धातु युग
धातु युग मानव सभ्यता के विकास का द्वितीय चरण था | इस युग में मनुष्य ने धातु के औजार तथा विभिन्न वस्तुयें बनाना सीख लिया था | इस युग में सोने का पता लगा लिया था एवं उसका प्रयोग करने भी लग गये थे | धातु की खोज के साथ ही मानव की क्षमताओं में भी वृद्धि हुई | हथियार अधिक उच्च कोटि के बनाने लग गये थे | धातुकालीन हथियारों में चित्र बनाने लगे थे |
इस युग में मानव ने धातु युग को तीन भागों में बांटा गया :-
- ताम्र युग
- कांस्य युग
- लौह युग
ताम्र युग :
इस युग में तांबे का प्रयोग प्रारम्भ हुआ | पाषाण की अपेक्षा यह अधिक सुदृढ़ और सुविधाजनक था | इस धातु से कुल्हाड़ी , भाले , तलवार तथा आवश्यक की सभी वस्तुयें ताम्बे से बनाई जाने लगी | कृषि कार्य इन्ही औजारों से किया जाने लगा |
कांस्य युग :
इस युग में मानव ने तांबा और टिन मिलाकर एक नवीन धातु कांसा बनाया जो अत्यंत कठोर था | कांसे के औजार उत्तरी भारत में प्राप्त हुये इन औजार में चित्र भी थे | अनाज उपजाने व् कुम्हार के चाक पर बर्तन बनाने की कला सीख ली थी | वह मातृ देवी और नर देवताओं की पूजा करता था | वह मृतकों को दफनाता था और धार्मिक अनुष्ठानों में विश्वास करता था | ताम्र पाषाण काल के लोग गांवों में रहते थे |
लौह युग :
दक्षिण भारत में उत्तर पाषाण काल के उपरांत ही लौह काल प्रारम्भ हुआ | लेकिन उतरी भारत में ताम्रकाल के उपरांत लौह काल प्रारम्भ हुआ | इस काल में लोहे के अस्त्र शास्त्रों का निर्माण किया जाने लगा | ताम्र पाषाण काल में पत्थर और ताम्बे के औजार बनाये जाते थे |